ऋतुओं में श्रेष्ठ #शरद ऋतु, मासों में श्रेष्ठ ‘#कार्तिक_मास’ तथा तिथियों में श्रेष्ठ #पूर्णिमा -
दिवाली के 15 दिन बाद आने वाली कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली कहा जाता है। इसे आम बोलचाल की भाषा में
कतकी भी कहते हैं। कहते हैं धरा वासियों द्वारा दीपावली मनाने के एक पक्ष बाद कार्तिक पूर्णिमा पर देवताओं की
दीपावली होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो देव दीपावली, दीपोत्सव के अंत का प्रतीक है।
कतकी भी कहते हैं। कहते हैं धरा वासियों द्वारा दीपावली मनाने के एक पक्ष बाद कार्तिक पूर्णिमा पर देवताओं की
दीपावली होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो देव दीपावली, दीपोत्सव के अंत का प्रतीक है।
शास्त्रों में इस दिन स्नान-दान और मां गंगा को दीपों से श्रृंगार करने का विधान बताया गया है| इस दिन प्रातः काल
उठकर श्री गणेश जी का ध्यान करें फिर काशी में गंगा स्नान कर गंगा जी को दीपक समर्पित करें। इस दिन भगवान
शिव की विधिवत पूजा करें। गंगा तट पर बैठकर ॐ नमः शिवाय का जप करें। महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।
श्री रामचरितमानस का पाठ करें। सुन्दरकाण्ड का निर्मल गंगा के तट पर निर्मल मन से पाठ करें।
इस दिन विष्णु पूजा भी की जाती है। श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें।
उठकर श्री गणेश जी का ध्यान करें फिर काशी में गंगा स्नान कर गंगा जी को दीपक समर्पित करें। इस दिन भगवान
शिव की विधिवत पूजा करें। गंगा तट पर बैठकर ॐ नमः शिवाय का जप करें। महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।
श्री रामचरितमानस का पाठ करें। सुन्दरकाण्ड का निर्मल गंगा के तट पर निर्मल मन से पाठ करें।
इस दिन विष्णु पूजा भी की जाती है। श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें।
देवताओं के पृथ्वी पर अवतरण का प्रतीक है '#देव_दीपावली' माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव धरती
पर आते हैं। देव दीपावली के दिन काशी में गंगा जी और शिव जी की अराधना की जाती है।
पर आते हैं। देव दीपावली के दिन काशी में गंगा जी और शिव जी की अराधना की जाती है।
दामोदराय विश्वाय विश्वरूपधराय च।
नमस्कृत्वा प्रदास्यामि व्योमदीपं हरिप्रियम।
कार्तिक मास की प्रतिपदा से पूर्णिमा तक आकाशदीप जलाने की परम्परा अंधियारे से उजाले की ओर
बढ़ने की सनातन परम्परा है। जैसा उपनिषद भी कहते हैं- 'तमसो मा ज्योतिर्गमय` अर्थात अंधेरे से प्रकाश
की ओर चलो।
बढ़ने की सनातन परम्परा है। जैसा उपनिषद भी कहते हैं- 'तमसो मा ज्योतिर्गमय` अर्थात अंधेरे से प्रकाश
की ओर चलो।
मान्यताओं के अनुसार 'असुरों के वध के बाद मनाई गई इस देव दीपावली के अवसर पर काशी के घाटों
पर 33 करोड़ देवता भगवान विष्णु की आराधना में दीप प्रज्वलन कर यह पर्व मनाते हैं।
पर 33 करोड़ देवता भगवान विष्णु की आराधना में दीप प्रज्वलन कर यह पर्व मनाते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था
और पूरे काशी को मुक्त कराया था। जिसके बाद से ही देवताओं ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान
शंकर की महाआरती की और नगर दीपक जलाकर सजाया था।
और पूरे काशी को मुक्त कराया था। जिसके बाद से ही देवताओं ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान
शंकर की महाआरती की और नगर दीपक जलाकर सजाया था।
मान्यता है कि भगवान शिव चतुर्दशी को चतुर्मास की निद्रा से जागते हैं परन्तु भगवान विष्णु
देव-दीपावली के दिन ही जागते हैं। इस अवसर पर सभी देवी देवता आकाश से आ कर धरती पर
उतरते हैं और काशी में दीप जलाते हैं। धार्मिक आस्था है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवता
दीपदान करते हैं। इसलिए इस दिन को देव दिवाली कहते हैं।
देव-दीपावली के दिन ही जागते हैं। इस अवसर पर सभी देवी देवता आकाश से आ कर धरती पर
उतरते हैं और काशी में दीप जलाते हैं। धार्मिक आस्था है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवता
दीपदान करते हैं। इसलिए इस दिन को देव दिवाली कहते हैं।
भगवान विष्णु आज के ही दिन दैत्यराज बलि के पास से बैकुंठ लोक वापिस आये थे इसी
ख़ुशी मे देवो ने दीप जलाये थे ।
ख़ुशी मे देवो ने दीप जलाये थे ।
मान्यता है कि इस दिन स्नान, दान से निरोगी काया और सुख-सम्पत्ति की प्राप्ति होती है
ऐसी मान्यता है कि संध्याकाल में त्रिपुरोत्सव करके दीपदान करने से पुनर्जन्म का कष्ट
नहीं होता है। देव दीपावली के दिन गाय के घी के 21 दीपक जलाने से पूर्व जन्म के पाप
नष्ट होते हैं और आर्थिक सम्पन्नता आती है। इस माह किये हुए स्नान, दान, होम, यज्ञ
और उपासना आदि का अनन्त फल है।
ऐसी मान्यता है कि संध्याकाल में त्रिपुरोत्सव करके दीपदान करने से पुनर्जन्म का कष्ट
नहीं होता है। देव दीपावली के दिन गाय के घी के 21 दीपक जलाने से पूर्व जन्म के पाप
नष्ट होते हैं और आर्थिक सम्पन्नता आती है। इस माह किये हुए स्नान, दान, होम, यज्ञ
और उपासना आदि का अनन्त फल है।
गंगा स्नान, पितरों को जलांजलि और कुशा अर्पित करें और कम्बल दान करें तो घर में
सुख-सम्पत्ति आती है।
सुख-सम्पत्ति आती है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्वयं भगवान श्रीष्ण तुलसी महारानी की पूजा निम्नलिखित मंत्र से
करते हैं:
करते हैं:
वृंदावनी वृंदा विश्वपूजिता पुष्पसार।
नंदिनी कृष्णजीवनी विश्वपावनी तुलसी।
इस मंत्र से पूर्णिमा के दिन जो भी व्यकित तुलसी महारानी की पूजा करता है वह जन्म-मृत्यु के
चक्रव्यूह से मुक्त होकर गोलोक वृंदावन जाने का अधिकारी बनता है।
चक्रव्यूह से मुक्त होकर गोलोक वृंदावन जाने का अधिकारी बनता है।
पुराणानुसार प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि को बचाने के लिए इसी दिन भगवान
श्रीहरि ने मत्स्य अवतार धारण किया था।
श्रीहरि ने मत्स्य अवतार धारण किया था।
महाकार्तिकी’ - कार्तिक पूर्णिमा के दिन अगर कृतिका नक्षत्र हो तो यह ‘महाकार्तिकी’ होती है,
ऐसी मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति
ज्ञानी और धनवान होता है।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति
ज्ञानी और धनवान होता है।
महापूर्णिमा - इस दिन कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और बृहस्पति हों तो यह महापूर्णिमा कहलाती है।
भरणी नक्षत्र होने पर विशेष फल मिलता है और रोहणी नक्षत्र होने पर इसका महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है ।
पद्मक योग - कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो "पद्मक योग" बनता है
जिसमें गंगा स्नान करने से पुष्कर से भी अधिक उत्तम फल की प्राप्ति होती है।
जिसमें गंगा स्नान करने से पुष्कर से भी अधिक उत्तम फल की प्राप्ति होती है।
त्रिकार्तिकी यदि किसी कारणवश पूरे कार्तिक मास का व्रत न लिया जा सके तो कार्तिक मास के
शुक्ल पक्ष की अन्तिम तीन दिन त्रयोदशी, चतुर्दशी तथा पूर्णिमा तिथियों पर भी यथाविधि
कार्तिक मास के नियमों का पालन करे तो पूरे कार्तिक मास स्नान का फल प्राप्त हो जाता है।
शुक्ल पक्ष की अन्तिम तीन दिन त्रयोदशी, चतुर्दशी तथा पूर्णिमा तिथियों पर भी यथाविधि
कार्तिक मास के नियमों का पालन करे तो पूरे कार्तिक मास स्नान का फल प्राप्त हो जाता है।
इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया
और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है।
और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है।
इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फल मिलता है।
ये तिथियाँ अतिपुष्करिणी कही गयी हैं और यह तीन दिनों का व्रत 'त्रिकार्तिकी` कहलाता है।
त्रयोदशी में समस्त वेद प्राणियों को पवित्र करते हैं, चतुर्दशी में यज्ञ और देवता सब जीवों को
पावन बनाते हैं और पूर्णिमा में भगवान विष्णु से अधिष्ठित सभी तीर्थ जल प्राणियों को शुद्ध करते हैं।
अंजु आनंद-चंडीगढ़
पावन बनाते हैं और पूर्णिमा में भगवान विष्णु से अधिष्ठित सभी तीर्थ जल प्राणियों को शुद्ध करते हैं।
अंजु आनंद-चंडीगढ़
No comments:
Post a Comment
We appreciate your comments.